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क्या है श्री नर्मदा की महिमा ?क्या है जबलपुर में एक जिलहरी दो शिवलिंग का रहस्य?


नर्मदा की महिमा ;-

04 FACTS;-

1-नर्मदा, समूचे विश्व में दिव्य व रहस्यमयी नदी है,इसकी महिमा का वर्णन चारों वेदों की व्याख्या में श्री विष्णु के अवतार वेदव्यास जी ने स्कन्द पुराण के रेवाखंड़ में किया है। इस नदी का प्राकट्य ही, विष्णु द्वारा अवतारों में किए राक्षस-वध के प्रायश्चित के लिए प्रभु शिव द्वारा अमरकण्टक के मैकल पर्वत पर 12 वर्ष की दिव्य कन्या के रूप में किया गया। महारूपवती होने के कारण विष्णु आदि देवताओं ने इस कन्या का नामकरण नर्मदा किया।इस दिव्य कन्या नर्मदा ने उत्तर वाहिनी गंगा के तट पर काशी के पंचक्रोशी क्षेत्र में 10,000 दिव्य वर्षों तक तपस्या करके प्रभु शिव से निम्न ऐसे वरदान प्राप्त किये जो कि अन्य किसी नदी और तीर्थ के पास नहीं है :'''प्रलय में भी मेरा नाश न हो। मैं विश्व में एकमात्र पाप-नाशिनी प्रसिद्ध होऊँ। मेरा हर पाषाण (नर्मदेश्वर) शिवलिंग के रूप में बिना प्राण-प्रतिष्ठा के पूजित हो। मेरे (नर्मदा) के तट पर शिव-पार्वती सहित सभी देवता निवास करें।'सभी देवता, ऋषि मुनि, गणेश, कार्तिकेय, राम, लक्ष्मण, हनुमान आदि ने नर्मदा तट पर ही तपस्या करके सिद्धियाँ प्राप्त की।

2-क्यों बहती हैं नर्मदा नदी उल्टी दिशा में ?-

05 POINTS;-

1-नर्मदा, जिसे रेवा के नाम से भी जाना जाता है, मध्य भारत की एक नदी और भारतीय उपमहाद्वीप की पांचवीं सबसे लंबी नदी है। यह गोदावरी नदी और कृष्णा नदी के बाद भारत के अंदर बहने वाली तीसरी सबसे लंबी नदी है। मध्य प्रदेश राज्य में इसके विशाल योगदान के कारण इसे "मध्य प्रदेश की जीवन रेखा" भी कहा जाता है। यह उत्तर और दक्षिण भारत के बीच एक पारंपरिक सीमा की तरह कार्य करती है। यह अपने उद्गम से पश्चिम की ओर 1,312 किमी चल कर खंभात की खाड़ी, अरब सागर में जा मिलती है।

2-नर्मदेश्वर शिवलिंग केवल भारत (मध्यप्रदेश ओर गुजरात) में नर्मदा नदी के तट पर ही मिलता है। नर्मदा देश की ऐसी नदी है जो पूर्व से पश्चिम की ओर उलटी दिशा में बहती है। यह विशालकाय पर्वतों को चीरते हुए बहती है। नर्मदा के तेज बहाव में बड़े-बड़े पत्थर ध्वस्त हो जाते हैं। देश की अन्य नदियों में मिलने वाले पत्थर पिंड के रूप में नहीं मिलते हैं। इससे यह प्रमाणित होता है कि केवल नर्मदा नदी पर ही शिव कृपा है।

3-नर्मदा नदी को लेकर कई लोक कथायें प्रचलित हैं एक कहानी के अनुसार नर्मदा जिसे रेवा के नाम से भी जाना जाता है ... राजा मैखल की पुत्री है। उन्होंने नर्मदा से शादी के लिए घोषणा की कि जो राजकुमार गुलबकावली के फूल उनकी बेटी के लिए लाएगा, उसके साथ नर्मदा का विवाह होगा। सोनभद्र यह फूल ले आए और उनका विवाह तय हो गया। दोनों की शादी में कुछ दिनों का समय था। नर्मदा सोनभद्र से कभी मिली नहीं थीं। उन्होंने अपनी दासी जुहिला के हाथों सोनभद्र के लिए एक संदेश भेजा।

4-जुहिला ने नर्मदा से राजकुमारी के वस्त्र और आभूषण मांगे और उसे पहनकर वह सोनभद्र से मिलने चली गईं। सोनभद्र ने जुहिला को ही राजकुमारी समझ लिया। जुहिला की नियत भी डगमगा गई और वह सोनभद्र का प्रणय निवेदन ठुकरा नहीं पाई। काफी समय बीता, जुहिला नहीं आई, तो नर्मदा का सब्र का बांध टूट गया। वह खुद सोनभद्र से मिलने चल पड़ीं। वहां जाकर देखा तो जुहिला और सोनभद्र को एक साथ पाया। इससे नाराज होकर वह उल्टी दिशा में चल पड़ीं। उसके बाद से नर्मदा बंगाल सागर की बजाय अरब सागर में जाकर मिल गईं।

5-एक अन्य कहानी के अनुसार सोनभद्र नदी को नद (नदी का पुरुष रूप) कहा जाता है। दोनों के घर पास थे। अमरकंटक की पहाडिय़ों में दोनों का बचपन बीता। दोनों किशोर हुए तो लगाव और बढ़ा। दोनों ने साथ जीने की कसमें खाई, लेकिन अचानक दोनों के जीवन में जुहिला आ गई। जुहिला नर्मदा की सखी थी। सोनभद्र जुहिला के प्रेम में पड़ गया। नर्मदा को यह पता चला तो उन्होंने सोनभद्र को समझाने की कोशिश की, लेकिन सोनभद्र नहीं माना। इससे नाराज होकर नर्मदा दूसरी दिशा में चल पड़ी और हमेशा कुंवारी रहने की कसम खाई । कहा जाता है कि इसीलिए गंगा सहित अन्य नदियां जहां बंगाल सागर में गिरती है वहीं नर्मदा बंगाल की खाड़ी का रास्ता छोड़ कर विपरीत दिशा “अरब सागर” से जाकर विलीन होती हैं।वर्तमान काल में नर्मदा की भौगोलिक स्थिति भी आप देख सकते हैं... वह हमेशा उल्टी ही बहती मिलेगी ।

3-गंगा से भी पवित्र;-

रामायण तथा महाभारत और परवर्ती ग्रंथों में इस नदी के विषय में अनेक उल्लेख हैं।विश्व में नर्मदा ही एक ऐसी नदी है जिसकी परिक्रमा की जाती है और पुराणों के अनुसार जहाँ गंगा में स्नान से जो फल मिलता है नर्मदा के दर्शन मात्र से ही उस फल की प्राप्ति होती है।पवित्र नदियों में शामिल नर्मदा नदी को गंगा की तुलना में कहीं अधिक पवित्र माना जाता है। कहा जाता है कि गंगा भी खुद को पवित्र करने इनकी शरण में आती हैं। मत्स्यपुराण में बताया गया है कि कनखल क्षेत्र में गंगा पवित्र है और कुरुक्षेत्र में सरस्वती। गांव हो चाहे वन, नर्मदा सर्वत्र पवित्र है।यमुना का जल एक सप्ताह में, सरस्वती का तीन दिन में, गंगा जल उसी दिन और नर्मदा का जल उसी क्षण पवित्र कर देता है।गंगा में स्नान करने पर शीघ्र ही पाप का नाश होता है, यमुना सात दिन के स्नान से और सरस्वती तीन दिन के स्नान से सब पापों का नाश करती हैं, परन्तु नर्मदा दर्शनमात्र से सम्पूर्ण पापों का निवारण करने वाली हैं।

4-नर्मदा नदी से निकलने वाले शिवलिंग को ‘नर्मदेश्वर’ कहते हैं। यह घर में भी स्थापित किए जाने वाला पवित्र और चमत्कारी शिवलिंग है; जिसकी पूजा अत्यन्त फलदायी है। यह साक्षात् शिवस्वरूप, सिद्ध व स्वयम्भू (जो भक्तों के कल्याण के लिए स्वयं प्रकट हुए हैं) शिवलिंग है। इसको वाणलिंग भी कहते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि मिट्टी या पाषाण से करोड़ गुना अधिक फल स्वर्णनिर्मित शिवलिंग के पूजन से मिलता है। स्वर्ण से करोड़गुना अधिक मणि और मणि से करोड़गुना अधिक फल बाणलिंग नर्मदेश्वर के पूजन से प्राप्त होता है।घर में इस शिवलिंग को स्थापित करते समय प्राणप्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं होती है। गृहस्थ लोगों को नर्मदेश्वर शिवलिंग की पूजा प्रतिदिन करनी चाहिए क्योंकि यह परिवार का मंगल करने वाला, समस्त सिद्धियों व स्थिर लक्ष्मी को देने वाला शिवलिंग है। सामान्यत: शिवलिंग पर चढ़ी कोई भी वस्तु ग्रहण नहीं की जाती, परन्तु नर्मदेश्वर शिवलिंग का प्रसाद ग्रहण कर सकते हैं।

श्री नर्मदा नदी का प्राकट्य;-

03 FACTS;-

1-इस ब्रह्मसृष्टि में पृथ्वी पर नर्मदा का अवतरण तीन बार हुआ है। प्रथम बार पाद्मकल्प के प्रथम सतयुग में, द्वितीय बार दक्षसावर्णि मन्वन्तर के प्रथम सतयुग में और तृतीय बार वर्तमान वैवस्वत मन्वन्तर के प्रथम सतयुग में। तीनों बार की नर्मदा अवतरण की कथाएँ इस प्रकार है..

प्रथम कथा – इस सृष्टि से पूर्व की सृष्टि में समुद्र के अधिदेवता पर ब्रह्मा जी किसी कारण रुष्ट को गये और उन्होंने समुद्र को मानव जन्म धारण का शाप दिया, फलत: पाद्मकल्प में समुद्र के अधिदेवता राजा पुरुकुत्स के रूप में पृथ्वी पर उत्पन्न हुए। एक बार पुरुकुत्स ने ऋषियों तथा देवताओ से पूछा भूलोक तथा दिव्य लोक में सर्वश्रेष्ठ तीर्थ कौंन-सा है ? देवताओं ने बताया रेवा ही सर्वश्रेष्ठ तीर्थ हैं। वे परम पावनी तथा शिव को प्रिय हैं। उनकी अन्य किसी से तुलना नहीं है।

राजा बोले – तब उन तीर्थोत्तमा रेवा को भूतल पर अवतीर्ण करने का प्रयत्न करना चाहिये। कवियो तथा देवताओ ने अपनी असमर्थता प्रकट की। उन्होंने कहा, वे नित्य शिव-सांनिध्य मे ही रहती हैं। शंकर जी भी उन्हें अपनी पुत्री मानते हैं वे उन्हें त्याग नहीं सकते। लेकिन राजा पुरुकुत्स निराश होने वाले नहीं थे। उनका संकल्प अटल था। विन्ध्य के शिखर पर जाकर उन्होंने तपस्या प्रारम्भ की। पुरुकुत्स की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान् शिव प्रकट हुए और उन्होंने राजा से वरदान माँगने को कहा। पुरुकुत्स बोले, परम तीर्थभूता नर्मदा का भूतल पर आप अवतरण करायें। उन रेवा के पृथ्वी पर अवतरण के सिवाय मुझे आपसे और कुछ नहीं चाहिये। भगवान् शिव ने पहले राजा को यह कार्य असम्भव बतलाया, किंतु जब शंकर जी ने देखा कि ये कोई दूसरा वर नहीं चाहते तो.उनकी निसपृहता एवं लोकमङ्गल की कामना से भगवान् भोलेनाथ बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने नर्मंदा को पृथ्वीपर उतरने का आदेश दिया। नर्मदा जी बोली, पृथ्वी पर मुझे कोई धारण करने वाला हो और आप भी मेरे समीप रहेंगे, तो में भूतल पर उतर सकती हूँ। शिवजी ने स्वीकार किया कि वे सर्वत्र नर्मदा के सन्निधिमें रहेंगे। आज भी नर्मदा का हर पत्थर शिवजी की प्रतिमाका द्योतक है तथा नर्मंदा का पावन तट शिवक्षेत्र कहलाता है। जब भगवान् शिव ने पर्वतो को आज्ञा दी कि आप नर्मदा को धारण करें, तब विंध्याचल के पुत्र पर्यंक पर्वत ने नर्मदा को धारण करना स्वीकार किया। पर्यंक पर्वत के मेकल नाम की चोटी से बाँस के पेड़ के अंदर से माँ नर्मदा प्रकट हुई। इसी कारण इनका एक नाम ‘मेकलसुता’ हो गया। देवताओं ने आकर प्रार्थना की कि यदि आप हमारा स्पर्श करेंगी तो हमलोग भी पवित्र हो जायेंगे। नर्मदा ने उत्तर दिया, मै अभी तक कुमारी हूँ अत: किसी पुरुष का स्पर्श नहीं करूँगी, पर यदि कोई हठपूर्वक मेरा स्पर्श करेगा तो वह भस्म हो जायगा। अत: आप लोग पहले मेरे लिये उपयुक्त पुरुष का विधान करें। देवताओं ने बताया कि राजा पुरुकुत्स आपके सर्वथा योग्य हैं, वे समुद्र के अवतार हैं तथा नदियों के नित्यपति समुद्र ही हैं। वे तो साक्षात् नारायण के अङ्ग से उत्पन्न उन्ही के अंश हैं, अत: आप उन्हीं का वरण कों। नर्मदा ने राजा पुरुकुत्स को पतिरूप में वरण कर लिया, फिर राजा की आज्ञा से नर्मदा ने अपने जल से देवताओ को पवित्र किया।

2-द्वितीय कथा – दक्षसावर्णि मन्वन्तर में महाराज हिरण्यतेजा ने नर्मदा के अवतरण के लिये 14 हजार वर्षतक तपस्या की। तपस्या से संतुष्ट होकर भगवान् शिव ने दर्शन दिया, तब हिरण्यतेजा ने भगवान शंकर से नर्मदा-अवतरण के लिये प्रार्थना की। नर्मदा जी ने इस मन्दन्तर में अवतार लेते समय अत्यन्त विशाल रूप धारण कर लिया। ऐसा लगा कि वे द्युलोक तथा पृथ्वी का भी प्रलय कर देगी। ऐसी स्थिति में पर्यंक पर्वत के शिखर पर भगवान् शंकर के दिव्य लिङ्ग का प्राकट्य हुआ। उस लिङ्ग से हुंकार पुर्वक एक ध्वनि निकली कि रेवा ! तुम्हें अपनी मर्यादा में रहना चाहिये। उस ध्वनि को सुनकर नर्मदा जी शान्त हो गयी और अत्यन्त छोटे रूप में आविर्भूत लिङ्ग को स्नान कराती हुई पृथ्वी पर प्रकट हो गयी। इस कल्प में जब वे अवतीर्ण हुई तो उनके विवाह की बात नहीं उठी; क्योंकि उनका विवाह तो प्रथम कल्प में ही हो चुका था।

3-तृतीय कथा – इस वैवस्वत मन्वन्तर में राजा पुरूरवा ने नर्मदा को भूतल पर लाने के लिये तपस्या की। यह ध्यान देने योग्य है कि पुरूरवा ने प्रथम चार अरणि मन्थन कर के अग्रिदेव को प्रकट किया था और उन्हें अपना पुत्र माना था। वैदिक यज्ञ इस मन्वन्तर में पुरूरवा से ही प्रारम्भ हुए। उससे पहले लोग ध्यान तथा तप करते थे। पुरूरवा ने तपस्या करके शंकर जी को प्रसन्न किया और नर्मदा के पृथ्वी पर उतरने का वरदान माँगा। इस कल्प में विन्ध्य के पुत्र पर्यंक पर्वत का नाम अमरकण्टक पड़ गया था; क्योंकि देवताओं को जो असुर कष्ट पहुँचाते थे, इसी पर्वत के वनों में रहने लगे थे। जब भगवान् शंकर के बाण से जल कर त्रिपुर इस पर्वत पर गिरा तो उसकी ज्वाला से जलकर असुर भस्म हो गये। नर्मदा के अवतरण की यह कथा द्वितीय कल्प के ही समान है। इस बार भी नर्मदा ने भूतल पर उतरते समय प्रलयं कारी रूप धारण किया था, किंतु भगवान् भोलेनाथ ने उन्हें अपनी मर्यादा में रहने का आदेश दे दिया था, जिससे वे अत्यन्त संकुचित होकर पृथ्वी पर प्रकट हुई।


जबलपुर के लम्हेटाघाट के एक जिलहरी दो शिवलिंग;-

04 FACTS;-

1-जबलपुर के रेवा के तट पर लम्हेरी ग्राम पंचायत में आने वाले एक शिव मंदिर है 'कुंभेश्वरनाथ' , जो समूचे विश्व में एकमात्र है।वैसे तो सारे संसार में अनगिनत प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष शिवलिंग स्थापित हैं, लेकिन कुंभेश्वरनाथ लम्हेटी तट रेवा खंड का एक ऐसा स्थान है, जो विश्व में एकमात्र है।एक जिलहरी में दो शिवलिंग होना अपने आप में बहुत अनोखा है। कुंभेश्वरनाथ में राम, लक्ष्मण से पहले हनुमान ने भगवान शिव की आराधना कर यहां पर प्रकृति का संवर्धन व संरक्षण किया था।नर्मदा-पुराण व शिव-पुराण के मतानुसार यह शिवलिंग स्वयं नर्मदा के अंदर से प्रकट हुआ था।नर्मदा पुराण के अनुसार कुंभेश्वरनाथ में पहले हनुमान ने तप किया था। मार्कन्डेय ऋषि ने पांडवों को कुंभेश्वरनाथ की कथा सुनाई थी। उन्होंने युधिष्ठिर को बताया था कि सीता माता के धरती में समा जाने के बाद रामअयोध्या में राज कर रहे थे। तब हनुमान को शिव दर्शन की लालसा जागृत हुई तो वे श्रीराम से कहकर कैलाश की ओर ‍चल दिए।

2-कैलाश पहुंचने पर नंदीश्वर ने हनुमान को शिव दर्शन से रोक दिया, तब हनुमान ने पूछा कि - मेरा पाप क्या है, जो मैं शिव के दर्शन नहीं कर सकता। तब नंदीश्वर ने कहा कि तुमने रावण कुल का संहार किया है और रावण की अशोक वाटिका को भी उजाड़ा था। इससे तुम्हें प्रकृति को नष्ट करने का पाप लगा है। रावण कुल ऋषि पुलत्स्य का कुल है और अत: तुम्हें ब्रह्म हत्या का पाप लगा है। अत: नर्मदा के कुंभेश्वर तीर्थ पर जाकर तप एवं प्रकृति का संवर्धन और संरक्षण कर अपने आपको पाप मुक्त करना होगा।अत: नंदी के परामर्श के अनुरूप हनुमान ने कुंभेश्वर तीर्थ में तप किया।जब ये सारी घटना उन्होंने प्रभु श्रीराम को बताई, तब उन्होंने कहा कि हम भी पाप के भागी है। अब हम भी कुंभेश्वर तीर्थ पर तप करेंगे।हनुमान से सारी कथा सुनकर श्रीराम-लक्ष्मण ने भी ब्रह्महत्या के दोष से निवृत्ति का संकल्प लिया। वे हनुमान के साथ उसी स्थान पर पहुंचे, जहां साधना करके उन्होंने प्रकृति व ब्रह्महत्या के दोष का निवारण किया था। जबलपुर के लम्हेटाघाट नामक किनारे के दूसरी ओर लम्हेटीघाट स्थित है, जहां नाव से पहुंचा जा सकता है। उसी स्थान पर कपितीर्थ में श्रीराम-लक्ष्मण ने सर्वप्रथम बालुका (रेत) से एक-एक शिवलिंग निर्मित किया। दोनों शिवलिंग एक जिलहरी में प्राणप्रतिष्ठित किए गए। राम द्वारा निर्मित शिवलिंग आकार में बड़ा जबकि लक्ष्मण का शिवलिंग छोटा है। वर्तमान में एक प्राचीन मंदिर में यह शिवलिंग स्थापित है। इस स्थान को अब रामेश्वर-लक्ष्मणेश्वर-कुंभेश्वर कपितीर्थ के नाम से जाना जाता है।इस तीर्थ-स्थल के आसपास नीलगिरी पर्वत, सूर्य कुंड, शनि कुंड, इंद्र गया कुंड, ब्रह्मा विमर्श शिला, बलि यज्ञ स्थली सहित काफी संख्या में आस्था के प्रतीक स्थल विद्यमान हैं।भेड़ाघाट-लम्हेटाघाट का नाम विश्व धरोहरों की सूची में शामिल कराने की दिशा में प्रयास शुरू कर दिए गए हैं।

जबलपुर में घूमने लायक जगह;-

1-धुआंधार जलप्रपात

जबलपुर के मुख्य शहर से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह धुआंधार जलप्रपात पर्यटकों के बीच काफी लोकप्रिय और आकर्षक का केंद्र है। जब 98 फीट की ऊंचाई से नर्मदा नदी यहा गिरती है तो बहुत मनोरम दृश्य उत्पन्न करती हैं। इस धुआंदार जलप्रपात को देखने के लिए पर्यटक ज्यादातर मॉनसून के मौसम में आते हैं।

यहां के वोटर फॉल में बोटिंग का आनंद उठा सकते हैं। इसके अतिरिक्त पर्यटक यहां पर केबल कार जैसी एडवेंचर एक्टिविटीज भी करते हैं। यहां के स्थानीय लोगों के लिए यह बहुत अच्छा पिकनिक स्पॉट भी है। यहां पर सुबह 6:00 बजे से लेकर रात के 8:00 बजे तक पर्यटक आ सकते हैं।

2-शिव मंदिर कचनार

कचनार जबलपुर के बीचो-बीच स्थित यह एक दार्शनिक स्थान है। यहां पर भगवान शिव को समर्पित मंदिर स्थापित किया गया है। मंदिर का गर्भ ग्रह एक गुफादार जगह में है, जिसके अंदर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग की स्थापना की गई है।

इस मंदिर में भगवान शिव की 76 फीट ऊंची विशालकाय प्रतिमा भी स्थापित की गई हैं। जबलपुर जाए तो इस सुंदर मंदिर का दर्शन करने जरूर जाएं।

3-ग्वारीघाटी

जबलपुर में स्थित ग्वारीघाट बहुत ही लोकप्रिय जगह है, जहां पर मां नर्मदा की पूजा अर्चना की जाती है। शाम के समय यहां पर आरती की जाती है। यहां पर एक मंदिर भी है जो पानी में आधा डूबा हुआ है।

यदि आप इस जगह को घूमने आना चाहते हैं तो शाम के समय ही आए। क्योंकि शाम के समय यहां का दृश्य बहुत ही ज्यादा मनमोहक हो जाता है। शाम के समय यहां चारों तरफ दिव्य वातावरण का एहसास होता है।ग्वारीघाट दोस्तों के साथ घूमने आने के लिए जबलपुर में बहुत थी खूबसूरत जगह है। यहां पर आप नर्मदा नदी में नौका विहार का भी लुफ्त उठा सकते हैं। यहां के नावों को बहुत ही सुंदर सजावट दीया गया होता है।यहां पर नर्मदा की नजाकत भरे सुंदर दृश्य की फोटोग्राफी की जा सकती है। यहाँ नदी में पंछियों की विशाल झूंड तैरती हुई नजर आती है। इसके खूबसूरत दृश्य को भी आप अपने कैमरे में कैप्चर कर सकते हैं।

‌4-तिलवारा नर्मदा घाट जबलपुर

जबलपुर के पर्यटक स्थलों में नर्मदा घाट पर स्थित तिलवारा घाट काफी प्रसिद्ध है। साल भर यहां पर श्रद्धालुओं और पर्यटकों की भीड़ जमी रहती है। मकर सक्रांति के समय इस जगह की सुंदरता काफी ज्यादा बढ़ जाती हैं।यदि आपको इस जगह की सुंदरता देखनी हो तो मकर सक्रांति में जा सकते हैं। यहां पर श्रद्धालु मां नर्मदा में स्नान भी करते हैं।

5-घूघरा जलप्रपात

यदि आप जबलपुर में प्राकृतिक वातावरण का आनंद लेना चाहते हैं और प्रकृति के साथ भरे वातावरण में कुछ पल सुकून का बिताना चाहते हैं तो आपको घूघरा जलप्रपात देखने जरूर आना चाहिए।

शहर के भीड़भाड़ से दूर शांत भरे माहौल की तलाश में यहां पर हर दिन हजारों पर्यटक आते हैं। यहां पर नर्मदा नदी की बहती हुई तेज जलधारा एक मनोरम प्राकृतिक दृश्य उत्पन्न करता है, जो यहां आने वाले पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देता है। यहां पर आप अच्छी तस्वीरें भी खिंच सकते हैं।घोघरा जलप्रपात देखने के लिए जाते वक्त अपने साथ कुछ नाश्ता भी जरूर लेकर जाए। क्योंकि वहां पर आपको कोई भी दुकान उपलब्ध नहीं मिलेगा। बारिश के मौसम में यहां पर आने के बाद काफी सावधानी बरतनी पड़ती है। क्योंकि अत्यधिक बारिश होने के कारण यहां पर नर्मदा का पानी घूघरा फॉल के पास दूर-दूर तक फैल जाता है।ऐसे में थोड़ी दूर रहकर ही प्राकृतिक नजारे का आनंद लेना सुरक्षित होगा। घूघरा वाटरफॉल जबलपुर के मुख्य शहर से मात्र 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां तक आने के लिए सगड़ा रोड से आगे आना पड़ता है। यहां पर आने के लिए आप टैक्सी या ऑटो ले सकते हैं।

6-जबलपुर का मदन महल किला

यदि आप इतिहास प्रेमी है, आपको ऐतिहासिक चीजो को एक्सप्लोर करने का शौक है तो आपको जबलपुर के इस जगह पर निश्चित ही आना चाहिए। मदन मोहन किला जबलपुर में एक चट्टानी पहाड़ के ऊपर स्थित है, जिसे 1116 में राजा मदन शाह द्वारा निर्मित किया गया था। उस समय इस शहर पर उन्हीं का शासन हुआ करता था।यह किला गोंड शासकों के लिए एक वसीयत नाम के रूप में खड़ा है। उस समय यह किला मुख्य रूप से सैन्य चौकी और पहरेदारी के रूप में कार्य करता था। इस राजसी किले में आपको उस काल के युद्ध कक्ष, गुप्त मार्ग, अस्तबल और एक छोटा जलाशय भी देखने को मिलेगा, जो उनके स्थापत्य सुंदरता का एक जीवंत उदाहरण है।

7-बरगी डेम

जबलपुर में नर्मदा नदी पर बरगी डैम बना हुआ है। यह नर्मदा नदी पर बने 30 डेमो में से एक महत्वपूर्ण डैम है। यहां के स्थानीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए जल आपूर्ति का एक प्रमुख स्त्रोत है।

यहां के शांति भरे वातावरण के कारण जबलपुर एक प्रमुख पर्यटन स्थल बन चुका है, जिस कारण इसके बढ़ती लोकप्रियता को नजर में रखते हुए यहां पर अधिकारियों ने पर्यटकों के लिए नाव की सवारी की भी परमिशन दे रखी है।

जबलपुर के अन्य पर्यटन स्थलों को घूमने के बाद आप यहां पर खुली हवा में शांत भरे वातावरण का आनंद लेने के लिए कुछ पल बैठ सकते हैं और सुंदर दृश्य को देखने का लुफ्त उठा सकते हैं।

8-जबलपुर गुरुद्वारा

जबलपुर के पर्यटन स्थलों में एक जबलपुर का यह गुरुद्वार भी हैं, जो नर्मदा नदी के किनारे ग्वारीघाट में स्थित है। यहां पर पर्यटक फूलों से सजे नाव में बोटिंग करने का आनंद लेते हैं।

9-डुमना नेचर रिजर्व पार्क

यदि आप प्रकृति प्रेमी है तो आपको जबलपुर की सीमा के बाहर स्थित इस पर्यावरण पर्यटन स्थल डुमना नेचर रिजर्व पार्क जरूर जाना चाहिए। यह पार्क लगभग 1058 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैला हुआ है।यहां पर पर्यटक आकर पर्यावरण की सुंदर दृश्य, विभिन्न प्रकार की वनस्पति और साहसिक और मनोरंजक गतिविधियों का आनंद लेते हैं। चारों तरफ हरे भरे माहौल में पर्यटक को काफी शांति मिलती है।यहां पर पर्यटको के मनोरंजन के लिए बोटिंग की भी सुविधा है। साथ ही यहां पर एक छोटा सा चिल्ड्रन पार्क भी है, जहां पर ट्रेन की सवारी की सुविधा है। इसके अलावा यहां पर एक रेस्टोरेंट है, जहां पर पर्यटक कुछ नाश्ता कर सकते हैं, कुछ गेस्ट रिजॉर्ट भी है।

10-श्री विष्णु वराह मंदिर

जबलपुर जिले के मझौली नामक गांव में श्री विष्णु वराह मंदिर स्थित है। यहां पर भगवान श्री कृष्ण के वराह रूप को दिखाया गया है। भगवान श्री कृष्ण ने पहली बार मानव रूप में धरती पर अवतार लिया था। लेकिन उनका आधा हिस्सा मानव था और आधा हिस्सा वराह का था, इसीलिए इन्हे वराह कहा गया।भगवान विष्णु ने वराह का अवतार अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा करने के लिए लिया था। भक्त प्रहलाद का पिता हिरण कश्यप एक राक्षस कुल का था। लेकिन प्रहलाद भगवान विष्णु का भक्त था और हिरण कश्यप नहीं चाहता था कि प्रहलाद भगवान विष्णु की भक्ति करें, इसीलिए वह उसे मारने की बहुत प्रयास करता है।लेकिन हर बार भगवान विष्णु के कृपा से उसका प्रयास में सफल हो जाता है। हिरण कश्यप को अपने शक्ति पर घमंड था क्योंकि उसे वरदान था कि उसे कोई भी मानव या जानवर आसमान या धरती पर नहीं मार पाएगा।अंत में जब हिरण कश्यप का पाप का घड़ा भर जाता है तब भगवान विष्णु उसे मारने के लिए आधा मानव और आधा जानवर का रूप लेकर अपने घुटनों पर सुला कर उसकी हत्या करते हैं। इस तरह धार्मिक दृष्टि से जबलपुर में यह मंदिर बहुत महत्व रखता है।इस मंदिर में वराह अवतार की मूर्ति के पीछे एक हाथी को भी प्रदर्शित किया गया है, जो भगवान विष्णु का वराह रूप को प्रदर्शित करता है। मंदिर में देवी काली, हनुमान जी और भगवान गणेश की भी मूर्तियां स्थापित है।

11-जबलपुर का बैलेंसिंग रॉक

जबलपुर से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह जगह पर्यटकों के बीच काफी लोकप्रिय है। क्योंकि यहां पर उपरी चट्टान एक निचली चट्टान के ऊपर जिस तरीके से संतुलन बनाए हुए अब तक खड़ा है, वह सच में आश्चर्य चकित है।यहां की स्थानीय लोगों का कहना है कि कोई भी प्राकृतिक आपदा में भी इस पत्थर का संतुलन नहीं बिगड़ता। यहां तक कि यह चट्टान 6.5 रिक्टर पैमाने की भूकंप में भी अपना संतुलन बनाए रखता है। इस आश्चर्यचकित चट्टान को देखने के लिए जबलपुर आने वाले हर पर्यटक इस जगह पर जरूर आते हैं।

12-भेड़ाघाट मार्बल रॉक

यह घाट जबलपुर के मुख्य शहर से 25 किलोमीटर दूर नर्मदा नदी के तट पर स्थित है। यहां के संगमरमर की चट्टानें 100 फीट ऊंची है और 25 किलोमीटर में फैली हुई है। जबलपुर के मुख्य शहर से यहां पर टैक्सी या कार से पहुंचने में मात्र 30 से 40 मिनट का समय लगता है।यहां पर स्थित संगमरमर के पत्थरों पर और नर्मदा नदी पर पड़ने वाली सूर्य की किरणें काफी खूबसूरत दृश्य उत्पन्न करती है। यहां के साथ और मंत्रमुग्ध कर देने वाले वातावरण में रहना पर्यटक को बेहद अच्छा लगता है। यहां पर पर्यटक बोटिंग का भी आनंद ले सकते हैं।

13-वर्ल्ड वाटर पार्क

जबलपुर में बच्चों के साथ अधिक घूमने जा रहे हैं तो वहां पर वर्ल्ड वाटर पार्क आपके लिए सबसे बेस्ट जगह होगा। यहां पर बच्चों के मनोरंजन के लिए बहुत सारी चीजें उपलब्ध है।यहां के कुछ गतिविधियों में बड़े भी शामिल हो सकते हैं। यहां पर प्रवेश के लिए शुल्क लगता है। प्रति व्यक्ति लगभग यहां पर ₹100 का फीस लगता है। सुबह से शाम के 5:00 बजे तक इस पार्क में प्रवेश रहता है।

14-चौसठ योगिनी मंदिर

जबलपुर में स्थित यह जगह देश के सबसे पुराने विरासत स्थलों में से एक है, जिसे 10 वीं शताब्दी में कलचुरियों द्वारा निर्मित किया गया था। इस मंदिर के केंद्र में भगवान शिव और देवी पार्वती को समर्पित प्रतिमाएं है।

मंदिर में 64 श्राइन है, जो इसके गोलाकार परिसर के दीवारो के साथ बने हुए हैं और प्रत्येक में एक योगिनी की नक्काशीदार आकृति भी है।हालांकि अब यह मंदिर एक खंडहर में बदल चुका है। लेकिन 150 सीढियों को चढ़ने के बाद इस मंदिर को देखा जा सकता है। खंडहर हो जाने के बावजूद भी यह जगह पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है।

15-पिसनहारी की मढ़िया

जबलपुर में एक पहाड़ी की चोटी पर हरी भरे पेड़ पौधों के बीच स्थित यह मंदिर एक जैन तीर्थ स्थल है। यह मंदिर जैन धर्म के दिगंबर संप्रदाय से संबंधित है, जिसे 500 साल पहले एक बूढ़ी औरत द्वारा बनाया गया था।

मंदिर की उत्तम डिजाइन, वास्तुकला और प्रमुख मूर्तियां यहां आने वाले पर्यटकों को आकर्षित करती है, इसी के कारण यह जगह जबलपुर का एक लोकप्रिय पर्यटक स्थल है। यहां के शांत वातावरण में पर्यटक को काफी अच्छा महसूस होता है।

16-रानी दुर्गावती संग्रहालय

जबलपुर में रानी दुर्गावती संग्रहालय एक बेहतरीन देखने लायक जगह है। रानी दुर्गावती संग्रहालय रसेल चौक के पास स्थित है। यहां पर आदिवासी संस्कृति और उनकी कलाकृतियों की झलक देखने को मिलती है, जो निश्चित तौर पर आपको बहुत आकर्षित करेगी।इस संग्रहालय में 64 योगिनी मंदिर की भी मूर्तियां रखी गई है। इतना ही नहीं यंहा पर महात्मा गांधी की भी कुछ विभिन्न तस्वीरें संग्रहित करके रखी गई है।


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